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पूर्व में नेता स्वयं के शौक और जनता के हित के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया करते थे,

पूर्व में नेता स्वयं के शौक और जनता के हित के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया करते थे, नेता का विचार व्यवहार में और जनहित में एक जैसा होता था, नेता किसी के डरता नहीं था, नेता के अंदर न ही कोई भय होता था, नेता बिल्कुल खुली किताब की तरह हुआ करता था, नेता जी का विचार कोई भी पढ़ लिया करता था, नेता जो बोलते थे, काम भी वो ही करते थे,


पूर्व का नेता कभी भी जेल जाने से नहीं डरता था, और सत्तापक्ष का नेता भी विपक्ष के नेता को अपना सहयोगी ही मानते थे,


लेकिन वर्तमान में एसा लगता है कि नेता "पद" पाने और "पद" पर बने रहने के लालच में काम कर रहे है, गुलामी और चाटुकारिता की एक मिशाल देखने को मिलती है, जो मुद्दा नेता जी के स्वयं के लाभ से न जुड़ा हो उस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती है, 


जनता भी विचारों संग संगठन से कम और व्यक्ति से ज्यादा जुड़ती है, तभी तो व्यक्ति बड़ा होता जा रहा है और विचार के साथ सगठन कमजोर,


सभी भारतीयों को प्रत्येक दिन फ्री रहकर स्वयं के मन विचार से बात करनी जरूरी है, समाधान जरूर मिलेगा, एक कदम तो बढ़ाए अपने स्वयं के विचार व्यवहार संग संगठन के लिए, सभी अपने दिखाई देगें,


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